होमियोपैथिक मेडिसिन किस प्रकार कार्य करती है

 

 

किसी भी पार्टिकल को रेजोनेंस के द्वारा पानी, अल्कोहल या शुगर ऑफ़ मिल्क  में तोड़ कर बॉन्डिंग कराई जाती है, जिससे वह उसमे घुल जाता है!

 

इसके बाद एक पार्टिकल इस मिश्रण का लेते है और 99 पार्टिकल एथिल अल्कोहल का लेते है और 99 सक्शन(स्ट्रोक) लगाते है!  यह एक पार्टिकल मॉलिक्यूल 99 पार्टिकल एथिल अल्कोहल में 99 बार सक्शन की वजह से टूटते हुए रेजोनेंस के द्वारा सिंगल मॉलिक्यूल बन जाता है! लास्ट के इलेक्ट्रान लेयर से इलेक्ट्रान निकलने पर जो एनर्जी निकलती है वह एनर्जी इस पार्टिकल की अल्कोहल के साथ बॉन्डिंग में काम आती है और सक्शन से उस पार्टिकल के इलेक्ट्रॉन्स के अंदर की लेयर टूट जाती है और सारी एनर्जी इस पार्टिकल की अल्कोहल से बंधन को मजबूत बनाती चली जाती है और यह एनर्जी मेडिसिन की तरह कार्य करती है और बनाती है 1 C पटेन्सी

 

इसके बाद एक पार्ट 1 C पोटेंसी का लेते है और 99 पार्ट वापस एथिल अल्कोहल लेते है फिर 99 सक्शन लगाते है फिर रेजोनेंस के द्वारा इस मॉलिक्यूल की 99 पार्ट अल्कोहल में बॉन्डिंग हो जाती है और जो एनर्जी निकलती है वह 2 C पटेन्सी के रूप में मेडिसिन की तरह कार्य करती है!

 

मिनिमम पावर हम 30 C, 200 C, 1000 C, 10,000 C, 1 लाख काम में लेते है! अर्थात ३० C में मेडिसिनल पार्ट 30 टाइम रिड्यूस्ड हो जाता है और एनर्जी ३० टाइम मोर रिलीज़ होती है, जो मेडिसिन की प्रॉपर्टी के रूप में शरीर में कार्य करती है!

 

 

यहाँ मेडिसिन की क्वांटिटी बिलकुल भी नहीं है इसलिए इसके साइड इफ़ेक्ट बॉडी में बिलकुल भी नहीं आते ! होम्योपैथी मे दवाई पौटैशियम साइनाइड से भी बनती है! जो मेडिसिनल प्रॉपर्टी होती है वह केवल पावर है यह मेडिसिनल पावर ही आपकी रोग प्रतिरोधक छमता को सपोर्ट प्रदान करती है!

 

जिससे आपकी रोग प्रतिरोधक छमता बढ़ जाती है और आपका शरीर स्वतः ही समस्त बैक्टीरिया से लड़ लेता है! इस प्रकार इस पावर की बॉडी में कोई रुकावट नहीं होती! इसके लिए जीभ पर – एब्जॉर्बर होते ही – जिससे मेडिसिन सीधे फ्रैक्शन पार्ट ऑफ़ सेकंड में शरीर के रोग ग्रस्त हिस्से में पहुंच जाती है और सपोर्ट प्रदान करती है इसलिए इससे तेज ट्रीटमेंट नहीं हो सकता!

 

होमयोपैथी धीरे कार्य करती है यह धारणा मिथ्या है यदि मेडिसिन का चुनाव सही है तो – सेकण्ड्स में रिकवरी मिलती है! इसलिए होमयोपैथी ब्रेन डिजीज, पैरालिसिस , स्किन डिजीज में बहुत अच्छा कार्य करती है!

 

इसलिए बीमारी के साथ यदि रोगी की इच्छाशक्ति स्ट्रोंग है, जीने की इच्छाशक्ति है तो रिकवरी फ़ास्ट आती है! क्योंकि होमयोपैथी नेचर को सपोर्ट करती है! उसके विरुद्ध नहीं जाती !

 

 

ब्रेन में बड़े मॉलिक्यूल के लिए बैरियर होते है इसलिए एलोपैथी की बहुत सारी दवाइयाँ ब्रेन में काम नहीं करती पर होमोयोपथिक मेडिसिन सिर्फ पावर होती है इसलिए इसका कोई बैरियर नहीं होता इसलिए ब्रेन में तुरंत काम करती है!

 

जानवरों भी अपने जैसे ही होते है इसलिए जानवरों पर भी उसी प्रकार प्रभावित होती है!

 

जितने अंदर के इलेक्ट्रॉनिक लेयर से इलेक्ट्रान निकलकर अलकोहल के साथ रेजोनेंस करेगी उतनी ज्यादा एनर्जी रिलीज़ होगी लास्ट में मॉलिक्यूल के सेंटर ब्रेकडाउन हो जाता है तो बहुत ज्यादा एनर्जी इससे निकलेगी जैसे परमाणु विखंडन में होता है इस प्रकार जैसे-जैसे पावर बढ़ती है वैसे-वैसे पार्टिकल की क्वांटिटी उसी रेश्यो में घटती जाती है इसलिए हाई पावर ज्यादा पावरफुल होती है!

 

 

पर हाई पावर का फ्रीक्वेंट रिपीटेशन होमोयोपथिक एग्रावेशन बढ़ा सकता है जिससे बीमारी बढ़ सकती है जैसा स्किन डिजीज में होता है इसलिए हाई पावर को जल्दी रिपीट नहीं करना चाहिए ! यदि मेडिसिन की पोटेंसी का सेलेक्शन सही है तो सेकण्ड्स में मरीज़ को फायदा मिल जाता है! सही सिलेक्टेड हाई पावर मेडिसिन बीमारी को पूरी तरह ठीक करने में सक्षम होती है क्योकि 10,000 पावर शरीर में 6 महीने तक काम करती रहती है और बीमारी को समाप्त कर देती है!

 

इसलिए हर बीमारी में हाई पावर नही दी जाती क्योकि वो बीमारी को बहुत ज्यादा बढ़ा सकती है जैसे – बुखार , उलटी , दस्त इत्यादि मे मिनिमम पावर ही फ्रीक्वेंट रिपीट की जानी चाहिए !

 

क्रोनिक केसेस जैसे की स्किन प्रोब्लेम्स में वाइटल फ़ोर्स का गड़बड़ी नहीं होती इसलिए यहाँ रोगी को हाई पावर देकर छोड़ना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए!